शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

ज्योतिष मे समय निर्धारण (गोचर)

ज्योतिष मे समय निर्धारण (गोचर)

ज्योतिष से किसी भी घटना के विषय मे फलित करना कितना आसान होता हैं उतना ही मुश्किल यह बताना होता हैं की घटना कब होगी ज्योतिष मे यह हमेशा से जोखिमभरा कार्य समझा जाता हैं |इसके लिए ज्योतिषी का विद्वान होने के अतिरिक्त अनुभवी भी होना ज़रूरी होता हैं |

हिन्दू ज्योतिष मे किसी भी कार्य को होने के लिए दशा व गोचर को महत्व दिया गया हैं जिसमे गोचर का अर्थ आकाश मे ग्रहो के भ्रमण से रखा गया हैं जबकि दशा कुंडली मे चन्द्र की स्थिति के द्वारा निर्धारित होती हैं वैसे तो दशाए बहुत सी हैं परंतु कलयुग मे विशोन्तरी दशा को ज़्यादा प्रभाव शाली माना व देखा गया हैं |

हम देखते हैं गोचर का प्रभाव व्यक्ति विशेष के मानसिक स्तर पर ज़्यादा पड़ता हैं इसलिए हमारे विद्वानो ने गोचर प्रभाव को चन्द्र लग्न से देखने की उपयोगिता बताई हैं फलदीपिका के 26वे अध्याय मे स्पष्ट रूप से कहाँ गया हैं की सभी लग्नों मे गोचर प्रभाव हेतु चन्द्र लग्न श्रेष्ठ होता हैं |चन्द्र को लग्न मानकर ही अन्य ग्रहो की स्थिति अनुसार गोचर प्रभाव देखना चाहिए |

दीर्घकालीन कालीन ग्रह शनि व गुरु का प्रभाव विशेष रूप से देखा जाना चाहिए गुरु का गोचर विशेषकर अपनी दशा मे बहुत शुभता प्रदान करता हैं जन्मकालीन चन्द्र से गुरु का 5,7,9,11 भावो मे गोचर जातक को आशावादी दृस्टिकोन प्रदान करता हैं यदि गुरु गोचर मे सप्तमेश से त्रिकोण मे हो तो विवाह करवा सकता हैं तथा पंचमेश से त्रिकोण मे होतो संतान जन्म का करवा सकता हैं |

शनि की सादेसाती भी गोचर मे विशेष प्रभाव दर्शाती हैं जन्मचन्द्र से शनि का 12वे पहले व 2रे गोचर जो की साढ़ेसात वर्ष का होता हैं सादेसाती कहलाता हैं जातक को जीवन मे विशेष महत्व रखता हैं चन्द्र से 12वे गोचर होने पर शनि सगे सम्बन्धियो की हानी,चिड़चिड़ापन,लडाई इत्यादि,चन्द्र लग्न से शनि का गोचर होने पर शारीरिक कमजोरी,नौकरी छूटना तथा विदेश यात्रा तथा चन्द्र लग्न से 2रे भाव मे शनि का गोचर होने पर धनसंपत्ती की हानी,व्यर्थ भ्रमण जैसे फल प्रदान करता हैं ऐसे मे दशा शुभ होतो इन फलो मे कमी तथा दशा अशुभ होने पर इन फलो मे अधिकता भी देखि जाती हैं 2.7.10.11 लग्नों मे शनि अशुभता प्रदान नहीं करता कुल मिलकर साढ़ेसाती जातक का घमंड तोड़ उसे आध्यात्मिकता प्रदान करती हैं |

गुरु शनि के अतिरिक्त अन्य ग्रहो का गोचरीय प्रभाव इतना महत्व नहीं रखता परंतु फिर भी कुछ अन्य ग्रह जैसे सूर्य,मंगल,का प्रभाव भी आकस्मिक रूप से देखा जाना चाहिए जैसे यदि षष्ट भाव प्रभावित हो दशा अंतर्दशा भी उससे संबन्धित चल रही होतो जिसे ही मंगल का गोचर षष्ट भाव से होगा स्वास्थ्य की हानी अवश्य होगी | इसी प्रकार यदि दशा सही हो और पद प्राप्ति का समय चल रहा हो तो जैसे ही सूर्य का गोचर जन्मकालीन चन्द्र से 3,6,11 भाव से होगा तब पद प्राप्ति होगी ऐसा समझना चाहिए |

राहू केतू का गोचर ध्यान से देखा जाना चाहिए राहू घमंड अथवा अकड़ को तोड़ता हैं वही केतू हमारी सोच पर प्रभाव डालता हैं राहू जब जन्म कालीन सूर्य पर से गोचर करे तब राजनीतिक गिरावट का सामना घमंड के कारण करना पड़ता हैं जबकि केतू का सूर्य से गोचर साथियो द्वारा आप पर भरोसा ना किए जाने के कारण आपको हटाया जाना होता हैं जिस कारण जातक मानसिक रूप से भयभीत रहने लगता हैं इसी प्रकार राहू का संवेदनशील भावो से गोचर जातक को विदेशी प्रभाव का अंधा लगाव तथा केतू का गोचर अपने ही सामाजिक दायरे मे लगाव प्रदर्शित करता हैं |

कई मायने मे ग्रहो का गोचर जातक विशेष पर अपना शुभाशुभ प्रभाव डालता हैं यहाँ गोचर से भी ज़्यादा जातक की सोच ही किसी भी कार्य को संपादित करती-कराती हैं |

फलदीपिका के अनुसार ग्रहो का गोचर प्रभाव-

1)ग्रह जो अशुभ प्रभाव दे रहा हो यदि शुभ ग्रह से देखा जा रहा हो अथवा ग्रह जो शुभ प्रभाव दे रहा हो यदि अशुभ ग्रह से देखा जा रहा हो अपना प्रभाव दे पाने मे असमर्थ हो जाता हैं |

2)अशुभ भाव का स्वामी यदि गोचर मे ऊंच,स्वग्रही होतो बुरा प्रभाव नहीं देता शुभ राशि व शुभ भाव मे ग्रह अपना शुभफल देता हैं |

3)ग्रह अपने शुभ भाव से गुजरते हुये यदि नीच,शत्रु राशि या ग्रहण मे होतो अपना फल नहीं दे पाता परंतु अशुभ भाव मे होतो अशुभ फल ज़रूर देता हैं |

4)गोचर प्रभाव दशा अंतर्दशा के ग्रहो के संबंध मे देखना चाहिए दशनाथ के 6,8,12 भावो से  पाप ग्रहो का गोचर अशुभ प्रभाव तथा गुरु का दशा नाथ से संबंध शुभफल देता हैं |

5)दशा अंतर्दशा मे ग्रह अपने स्थित भावो से संबन्धित ही फल प्रदान करता हैं जैसे दशम भाव मे स्थित ग्रह अपने गोचर से पद प्राप्ति,नौकरी अथवा सम्मान दिलवा सकता हैं |

6)ग्रहो के प्राकृतिक कारकत्वों का फल भी दशा अंतर्दशा मे मिल सकता हैं जैसे शुक्र सप्तमेश होने पर अपनी दशा अंतर्दशा मे मे विवाह करवा सकता हैं चाहे वह सप्तम भाव से सीधा संबन्धित हो या ना हो |

7)ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी के द्वारा भी अपने फल प्रदान कर सकते हैं विशेषकर राहू केतू ऐसा ही करते हैं |


     

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