शनिवार, 7 मार्च 2015

ज्योतिष व स्वाइन फ्लू



ज्योतिष व स्वाइन फ्लू

मार्च 2009 मे पूरी दुनिया मे एक नई बीमारी का जन्म हुआ जिसे “स्वाइन फ्लू”का नाम दिया गया कुछ समय बाद ही यह बीमारी बड़ी तेजी से फैली व महामारी के रूप मे देखी जाने लगी | वैज्ञानिको व डोक्टरों ने इसके इलाज़ हेतु दावा तो खोज ली परंतु तब तक इसने पूरी दुनिया मे 10,000 लोगो को संक्रमित कर डाला व 2500 से ज़्यादा व्यक्ति मौत के घाट उतार दिये | 
आइए इस बीमारी का ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं |

सर्वप्रथम यह देखते हैं की हमें ग्रहो के द्वारा रोग होते कैसे हैं | ज्योतिष मे ग्रहो को निम्न तत्वो मे बांटा गया हैं |
अग्नि तत्व-सूर्य,मंगल व केतू

वायु तत्व-शनि व राहू

जल तत्व-चन्द्र शुक्र व राहू

पृथ्वी तत्व-बुध 

आकाश तत्व-गुरु व केतू

स्पष्ट हैं की कुछ गृह दो तत्वो मे बटें हैं तथा इन तत्वो का परस्पर संबंध भी विविध प्रकार का होता हैं अग्नि तत्व हेतु पृथ्वी व वायु तत्व मित्र किन्तु जल तत्व शत्रु हैं | पृथ्वी तत्व हेतु अग्नि व जल तत्व मित्रा किन्तु वायु तत्व शत्रु हैं जल तत्व के लिए पृथ्वी व वायु मित्र तथा अग्नि तत्व शत्रु हैं |
इन्ही तत्वो मे विराजित ग्रहो के प्रतिकूल होने पर उस गृह से संबन्धित तत्व गड़बड़ा जाता हैं जिससे उसका प्रकोप व प्रतिकूलता होने से रोग जन्म ले लेता हैं | चूंकि धरती पर ग्रहो का प्रभाव उनकी गति,पृथ्वी से निकटता व दूरी पर भी निर्भर करता हैं अत: उन्ही अवस्थाओ मे रोगो का जन्म होता हैं और मनुष्य प्रभावित होते हैं |

स्वाइन फ्लू का जन्म –इस भयंकर रोग की शुरुआत मेक्सिको नामक देश के एक सूअर पालन केंद्र से हुयी जहां 18 मार्च 2009 को इस बीमारी का पहला मरीज मिला इससे पहले की इस बीमारी का कोई ठोस इलाज़ मिल पाता इसने अमरीका व एशिया मे अपने पाँव तेजी से फैला दिये और जुलाई के महीने मे इसने भारतवर्ष पर अपना पहला शिकार पुना शहर की एक 14 वर्षीय बालिका को बनाया जिससे भारत मे इस बीमारी की शुरुआत हो गयी | वास्तव मे यह बीमारी सूअर मे पाये जाने वाले इंफ्लुएंज़ा नामक बीमारी के वाइरस "एच वन एन वन" का ही बदला हुआ रूप हैं जिसे स्वाइन फ्लू का नाम दे दिया गया हैं |

ज्योतिष शास्त्र व रोग-ज्योतिष शस्त्र मे छठा भाव रोग का माना जाता हैं जिसके कारक शनि व मंगल गृह हैं यह भी इत्तेफाक ही हैं की इस बीमारी का संबंध भी मंगल व शनि से ही हैं |

यह बीमारी इंफ्लुएंज़ा नामक बीमारी का ही विकृत रूप हैं जिसका संबंध मंगल व शनि से हैं मंगल हमारे शरीर  मे कान,आँख,नाक,खून,फेफड़े व मस्तिष्क पर नियंत्रण रखता हैं तथा बुखार,अग्नि,रक्तचाप,पीलिया,चेचक,दुर्घटना,चोट व सर्जरी का पता बताता हैं | वही शनि शरीर मे वायु पित ,सिर,गरदन,दाँत व हड्डियों पर नियंत्रण तथा प्रदूषण से होने वाले संक्रमित बीमारियो वायु विकार गठिया तथा जोड़ो का दर्द का पता बताता हैं |

जब भी आकाश मे भ्रमण करते समय मंगल व शनि का संबंध किसी भी प्रकार से बनता हैं पृथ्वीवासियो पर महामारी,दुर्घटनाए,व प्रकृतिक आपदाए आती हैं ऐसा हम पहले से जानते हैं कारण इन दोनों मे आपस मे शत्रुता का व्यवहार होना मार्च 2009 की कुंडली देखे तो पता चलता हैं की उस समय मंगल कुम्भ राशि मे तथा शनि सिंह राशि मे विराजित थे जिससे उनका संबंध बना हुया था (इसी दौरान मेक्सिको मे इस बीमारी का पता चला )22 जुलाई 2009 को जब स्वतंत्र भारत की राशि कर्क पर सूर्य ग्रहण पड़ा जब इस बीमारी ने भारत मे दस्तक दी परंतु तब तक यह अन्य पूर्वी आसियाई देशो मे फैल चुकी थी | यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं की इस दौरान भी कर्क राशि नक्षत्र पुष्य पर मंगल शनि का दृस्टी संबंध बना हुआ था |

जुलाई महीने से ही मंगल भारतीय जन्म राशि कर्क के नजदीक आ रहा हैं जिससे इस बीमारी को बढ्ने का पूरा अवसर मिला परंतु कर्क राशि मे ही मंगल नीच का हो जाता हैं (पृथ्वी से दूर चला जाता हैं )जिससे इस रोग की त्रिवता मे ज़बरदस्त रूप से कमी आएगी |

कब तक रहेगा स्वाइन फ्लू -अक्तूबर माह तक शनि व मंगल का संबंध बना रहेगा अक्तूबर 5 तारीख को जब मंगल कर्क राशि मे प्रवेश करेगा तब इस बीमारी मे कमी देखी जाएगी परंतु असली छुटकारा 13 अक्तूबर (गुरु के मार्गी होने के कारण ) से मिलेगा | गुरु स्वतंत्र भारत की राशि कर्क से समसप्तक मकर राशि मे राहू संग चांडाल योग बना रहा हैं जो भारत केलिए कुछ ना कुछ परेशानियाँ लगाकर रखे हुये हैं |

प्रस्तुत लेख हमने 2009 मे लिखा था जो आप का भविष्य नामक ज्योतिष पत्रिका मे दिसंबर 2009 मे प्रकाशित हुआ था |

वर्तमान परिदश्य मे देखे तो मंगल गृह ने 27 नवंबर 2014 को मकर राशि मे तथा 4 जनवरी को कुम्भ राशि मे प्रवेश किया जिससे मंगल व शनि का संबंध बना तथा 8 दिसंबर 2014 को गुरु गृह वक्री हुआ जिनके समस्त प्रभाव से इस बीमारी ने भारत वर्ष मे अपना भयानक प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया हैं परंतु 12 फरवरी 2015 को मंगल ने मीन राशि मे प्रवेश कर लिया हैं जिससे इस रोग मे कमी तो आ गयी हैं परंतु जब 8 अप्रैल 2015 को गुरु मार्गी होंगे तब इस बीमारी का अंत भारतवर्ष मे हो जाएगा | 
     

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